ताजमहल हो चुका था नीलाम
ताजमहल सन 1831 में हो चुका है नीलाम। इसे मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने खरीदा था।
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सुशील तिवारी
'विशेष संवाददाता' सहारा समय आगरा
ताजमहल की नीलामी दो बार की गई पहली बार में इसे डेढ़ लाख में व दूसरी बार सात लाख में इसे बेचा गया। शर्त ये थी कि ताजमहल के पत्थरों पर खूबसूरत इनले वर्क और सुंदर पत्थरों को तोड़कर अंग्रेजों को सौंपना था।
ताजमहल को तोड़ने से पहले ही लंदन असेंबली में ये मामला गूंजा और और ताजमहल की नीलामी रोक दी गई और ताजमहल टूटने से बच गया। सन 1831 में अग्रेजों की राजधानी कोलकाता में एक विज्ञप्ति प्रकाशित हुई जिसके आधार पर ताजमहल की नीलामी की बोली लगाई गई।
इस बोली में मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने इसे ड़ेढ़ लाख रुपये में खरीद लिया ।उस वक्त गवर्नर लार्ड विलियम वैंटिक था जिसकी योजना थी कि ताजमहल के खूबसूरत पत्थरों पर खूबसूरत ले वर्क और रंगबिरंगे हस्तशिल्प कला से युक्त पत्थरों को तोड़कर लंदन में बेच दिया जाएगा।
क्योंकि नीलामी में ये भी शर्त थी कि ताजमहल को तोड़कर इसके खूबसूरत पत्थरों को अंग्रेजों को सौंपना होगा।लंदन असेंबली में ये मामला गूंजने पर वहां के लोगों ने इसको बेचने पर रोक लगा दी। बाद में ये नीलामी रोकी गई और ताजमहल टूटने से बच गया।
इस घटना की जिक्र अंग्रेज और हिंदुस्तानी लेखकों ने पुस्तकों में किया है।लेखक एच.जी.कैन्स ने ने 'आगरा एण्ड नाइबर हुड्स' पुस्तक में और सतीश चतुर्वेदी ने 'आगरानामा' में रामनाथ ने 'द ताजमहल' में इस घटना का जिक्र किया है।
सेठ लक्ष्मीचंद्र के परपोते विजय कुमार मथुरा में रहते हैं उन्होंने कहा कि सेठ लक्ष्मीचंद्र ने ताजमहल को पहले डेढ़ लाख में और बाद में बोली कैंसिल हो जाने पर दोबारा सात लाख में खरीदा था जो बाद में निरस्त हो गयी।विजय कुमार हाईकोर्ट में एक PIL फाइल करने जा रहे हैं।
लार्ड विलियम वैंटिक 1828 से 1835 तक भारत का गवर्नर जनरल रहा। जिसकी योजना तो ये थी कि ताजमहल के खूबसूरत पत्थरों पर ले वर्क और रंगबिरंगे हस्तशिल्प कला से युक्त पत्थरों को तोड़कर लंदन में बेच दे लेकिन ऐसा हो ना सका। वरना मुमताज महल की याद में बनी प्रेम की ये खूबसूरत निशानी आज इतिहास के पन्नों में ही दिखाई देती।
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